वक़्त को थाम लीजिये
विभा बड़बड़ा रही थी और घर के काम किसी तरह निपटा रही थी | जब मन में गुस्सा हो तो किसी काम में मन कहाँ लगता है | कामवाली ने विभा दीदी का मूड देखा तो पुछा – क्या हुआ दीदी | माँजी से कोई बात हो गयी क्या | नहीं तो |तू जल्दी हाथ चला | कामवाली जल्दी जल्दी काम निपटा के मांजी के सर में तेल डालने चली गयी |
विभा भी काम खत्म करके अपने कमरे में आ गयी | अलमारी खोलकर कपड़े सेट करने लगी | तभी एक लाल कपड़ा उसके हाथ लगा , खींचा तो खिंचता चला गया | उस कपड़े के साथ साथ यादों की पिटारी भी खुल गयी | विशु ने बहुत प्यार से उसे ये लाल साड़ी उसके पहले करवा चौथ पे सरप्राइज दी थी | और वो उस साड़ी को पहन कर खूब इतराई थी | उसे याद आने लगा कि कैसे शादी के शुरुआती दिनों में विशु उसके इर्द गिर्द घूमता रहता था मानो वो ही उसकी दुनिया थी और वो भी जान भूझ कर खूब सारे नखरे करती थी | उसे मान था विशु के प्यार पे | कैसे उनके पहले बच्चे के इस दुनिया में आने की जानकारी मिलते ही विशु के पाँव ज़मीन पे नहीं टिकते थे | समय मानो पंख लगा के उड़ गया था और उसके साथ साथ उनका प्यार भी | सुबह की बात याद आते ही विभा के आंसू बह चले थे | उनको ज़बरदस्ती रोकती हुई वो तौलिया ले कर बाथरूम में घुसी , और आइना देख कर खुद को रोक नहीं पायी | अंदर समेट कर रखा हुआ दुःख आँखों के रस्ते बह रहा था क्यूंकि अब तो ये आइना ही उसका दोस्त था | जो बात वो विशु से नहीं कह पाती थी वो उसे सुना देती थी | क्यूंकि अब विशु के पास वक़्त ही कहाँ था |
आस्था और युवल की पैदाइश के बाद तो विशु इतने व्यस्त हैं की पूछो मत | बात भी किश्तों में होती है | सुबह उठकर जिम जाना, फिर आकर नाश्ता और सासुमा से बातचीत, फिर ऑफिस के लिए निकल जाना, रात को लेट आना और देर रात तक टीवी देखना, यही उनकी दिनचर्या है | उसमे पत्नी के लिए जगह कहाँ | जब भी बात करने की कोशिश करो, कहते हैं व्ट्सअप्प कर देना | घर का राशन लाना हो या बच्चों की स्कूल फी जमा करनी हो, हर चीज़ व्टसप्प पे | विभा के मन की कोई बात कहाँ हो , क्या पता | और तो और, एनिवर्सरी और जन्मदिन भी फेसबुक पे विश करते हैं | जब घर में अजनबी हूँ तो फेसबुक पे इतनी आत्मीयता कहाँ से आती है, पता नहीं | एक दुसरे के स्पर्श को महसूस करे हुए कितने दिन हो जाते हैं, पता नहीं लेकिन मैं शिकायत नहीं कर सकती क्यूंकि उन्हें वक़्त नहीं है|
कई दिनों से रह रह के पेट में दर्द हो रहा था | विभा ने सोचा गैस होगी, इसलिए कभी चूरन कभी अजवाइन ले कर बात को टाल रही थी | विशु से कहने की बहुत कोशिश की लेकिन हमेशा की तरह आधी अधूरी बात सुन कर विशु ऑफिस चले गए | रात को बात करने की कोशिश की तो सासुमा ने डाँट दिया की अभी तो थका हारा लौटा है, कम से कम वक़्त देख कर तो बात कर लिया करो | अपने आप पर बहुत गुस्सा आया की इतने सालों में मैं इतनी भी आत्म निर्भर नहीं हो पायी की डॉक्टर पे भी खुद चली जाऊँ | अगली सुबह विभा से दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था | बच्चों को जैसे तैसे भेज कर वो कमरे में चली गयी | विशु से जैसे ही कहने की कोशिश की तो उसने कहा अभी वक़्त नहीं है ,शाम को बात करते हैं , अभी लेट हो रहा है | एक तो बेहताशा दर्द और ऊपर से विशु की बेरूखी अब विभा से बर्दाश्त नहीं हुई, लगभग चीखते हुए बोली- तो कब होगा, जब मैं मर जाऊंगी | कमरे में सन्नाटा छा गया | विशु ने उम्मीद नहीं की थी की विभा कभी ऐसे भी बात करेंगी |
विभा चीखते हुए रही थी- जब ही बात करूँ, तभी टाइम नहीं है कब होगा ये टाइम | सुबह, दोपहर, शाम, कभी तो टाइम होना ही चाहिए आपके पास | आपकी बीवी हूँ मैं, आपके घर की नौकरानी नहीं | कहाँ जाता है आपका टाइम | अपने काम के लिए टाइम है, अपने दोस्तों के लिए टाइम है, अपनी माँ के लिए टाइम है, अपनी जिम के लिए टाइम है लेकिन इस खूंटे से बंधी हुई गाय के लिए टाइम नहीं है | कहते कहते विभा बेहोश हो गयी |
आँखें खुलीं तो खुद को हॉस्पिटल के बेड पे पाया | नर्स आयी तो पता चला की उसका अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ है | अगर थोड़ी देर और हो जाती तो वो जिन्दा न बचती | हे भगवान, अपने आपको मैं कब से उपेक्षित कर रही थी, उसका अंजाम इतना भयंकर होगा ऐसा उसने कभी नहीं सोचा था | यही सब सोचते सोचते कब वो वापिस बेहोश हो गयी, उसे पता ही नहीं चला |
आँख खुली तो खुद को अपने पति और बच्चों से घिरा हुआ पाया | विशु की आँखों में पश्चाताप के आंसूं थे और बच्चों के चेहरे पे परेशानी |
तब विभा को लगा की उसकी घर वापसी हो गयी है | विभा की आँख के कोने से एक आंसू बह चला | विशु ने उसका हाथ कास कर पकड़ लिया |
अभी भी वक़्त है डिअर हस्बैंड्स , पत्नी आपकी रीढ़ की हड्डी है, उसी के साथ आपका अस्तित्व है, उसे वक़्त रहते थम लीजिये
वक़्त को थाम लीजिये|
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